इनामदार

जासूसी से अय्याशी तक, केजरीवाल का कच्चा-चिट्ठा!
10/10/2016
दिल्ली में अरविंद केजरीवाल सरकार के कामकाज को लेकर उठ रहे सवालों के बीच ‘ओपन’ मैगजीन ने बड़ा खुलासा किया है। मैगजीन के ताजा अंक में छपी रिपोर्ट में केजरीवाल सरकार के बारे में ऐसी जानकारियां दी गई हैं, जो अपने आप में चिंता की बात है। कुल मिलाकर निचोड़ यह है कि आम आदमी के नाम पर सत्ता में आई यह मंडली इन दिनों अय्याशी में डूबी हुई है। मनमानी ऐसी है कि यह मुख्यमंत्री से लेकर मामूली विधायक तक किसी संविधान में तय नियम-कायदों को मानने को तैयार नहीं है। सरकार में केजरीवाल के रिश्तेदारों से लेकर पार्टी के वॉलेंटियर्स तक को खुलेआम रेवड़ियां बांटी जा रही हैं। ओपन मैगजीन में छपी रिपोर्ट की अहम बातों को हम यहां हिंदी में आपके लिए लेकर आए हैं।
1. केजरीवाल का बर्ताव सनकी जैसा
अरविंद केजरीवाल के साथ काम करने वाले बताते हैं कि वो बेहद तुनकमिजाज और घमंडी हैं। अपनी बात मनवाने के लिए वो ड्रामेबाजी में भी माहिर हैं। उनकी ये आदतें कई बार निजी और सार्वजनिक बातचीत में जाहिर हो चुकी है। 2014 में लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद जब प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव ने उनका विरोध शुरू किया तो बैठकों में वो फिल्मी स्टाइल में रोने और कभी-कभी चीखने-चिल्लाने लगते थे। आशुतोष ने अपनी किताब में भी लिखा है कि उस दौर में केजरीवाल अनियंत्रित रूप से भावुक हो गए थे। कई बार वो रोने लगते थे और एक बार तो जमीन पर लोट गए।
2. जासूसी एजेंसी बनाने की कोशिश
2015 में दूसरी बार सत्ता में आने के बाद अरविंद केजरीवाल ने ईडी, पुलिस, सीबीआई और कुछ दूसरी खुफिया एजेंसियों में काम कर चुके रिटायर्ड और मौजूदा अधिकारियों की टीम बनानी शुरू कर दी। इन लोगों को सीक्रेट तरीके से फंडिंग की गई। केजरीवाल का इरादा था कि वो इन लोगों की मदद से दिल्ली सरकार की एक खुफिया/जासूसी एजेंसी बनाएंगे जो मौजूदा एंटी-करप्शन ब्यूरो (एसीबी) के अलावा काम करेगी। ये सारा काम चोरी-छिपे चल रहा था और इसके लिए कानूनी तौर पर जरूरी मंजूरी भी नहीं ली गई। सारा ढांचा इस तरह का था कि ये सीक्रेट एजेंसी सिर्फ और सिर्फ अरविंद केजरीवाल को रिपोर्ट करेगी।
3. जासूसी के साजो-सामान और भर्तियां भी!
सत्ता संभालने के कुछ दिनों के अंदर ही 1 अप्रैल 2015 को दिल्ली कैबिनेट ने एंटी-करप्शन ब्यूरो में 259 नई भर्तियां करने पर मुहर लगाई। इसी मीटिंग में सीक्रेट सर्विस फंड को 1.5 लाख रुपये से बढ़ाकर 20 लाख करने का प्रस्ताव हुआ। मीटिंग में एकाउंट्स से लेकर, इनकम टैक्स, इंजीनियरिंग और लीगल प्रोफेशनल्स की भर्ती पर भी बात हुई। यह प्लान तैयार हुआ कि इस सीक्रेट एजेंसी के लिए हाईटेक जासूसी उपकरण खरीदे जाएंगे। ऐसे साजोसामान आमतौर पर सीबीआई और आईबी जैसे एजेंसियां ही इस्तेमाल करती हैं। 29 सितंबर 2015 को हुई कैबिनेट बैठक में सतर्कता निदेशालय के तहत एक विभाग बनाने की बात हुई, जिसे हाथों-हाथ मंजूरी भी मिल गई। इस नए विभाग के बारे में केजरीवाल और उनके मंत्रियों के अलावा किसी को जानकारी नहीं होने दी गई। इसका नाम रखा गया फीडबैक यूनिट। इस यूनिट में इस साल फरवरी तक करीब 20 लोग काम भी कर रहे थे। बाद में कुछ और लोगों की भी भर्ती हुई। जो लोग चुने गए थे उनकी योग्यता का कोई पैमाना नहीं था। उनकी इकलौती काबिलियत यह थी कि वो आम आदमी पार्टी से जुड़े थे। दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव सरकार के चीफ विजिलेंस ऑफिसर भी होते हैं, लेकिन उन्हें भी इस कदम की कोई जानकारी नहीं दी गई। दिल्ली के प्रशासनिक प्रमुख नजीब जंग को भी इस यूनिट के बारे में पहली बार इस साल अगस्त में पता चला।
4. सलाहकारों के नाम पर सफेद हाथी पाले!
जासूसी की तर्ज पर ही केजरीवाल सरकार ने एक क्रिएटिव यूनिट भी बनाया है। कहा गया कि ये सरकारी प्रोजेक्ट्स के लिए सलाहकार का काम करेंगे। दो साल की अवधि के लिए बनाई गई इस यूनिट में एक्सपर्ट प्रोफेशनल्स की भर्ती की बात कही गई थी। लेकिन इसके लिए दिल्ली की एक रिक्रूटमेंट फर्म सोनी डिटेक्टिव एंड एलाइड सर्विसेज के जरिए भर्तियां की गईं। जबकि इस फर्म को सिक्योरिटी गार्ड जैसी भर्तियों का ही तजुर्बा था। हैरत की बात यह रही कि इस टीम के लोगों को सैलरी बारापुला एलिवेटेड रोज के थर्ड फेज के बजट में से तय की गई। जाहिर है यह नियमों का सरासर उल्लंघन था। सरकार के इसी रवैये का नतीजा है कि सराय काले खां से मयूर विहार तक बारापुला एलिवेटेड फ्लाईवे बेहद सुस्त रफ्तार से बन रहा है और इसकी वजह से लाखों लोगों को रोज घंटों ट्रैफिक जाम में फंसना पड़ रहा है।
बारापुला एलिवेटेड रोड बनने की वजह से दिल्ली और नोएडा के बीच रोज घंटों जाम लगा रहता है। यह सड़क बेहद धीमी रफ्तार से बन रही है। जिसका खामियाजा रोज लाखों लोगों को भुगतना पड़ रहा है।
5. अय्याशी में बड़े-बड़े भ्रष्टाचारी पीछे छूटे
जब तक सत्ता नहीं मिली आम आदमी पार्टी के नेता किफायती दिखने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे। विदेशी एजेंसियों से मिल रहे चंदे के कारण ठीक-ठाक अमीर होने के बावजूद केजरीवाल टूटी हुई सैंडल और घिसी हुई पैंट पहनते रहे। पहली बार सीएम बनने के बाद दिखावे के लिए वैगन आर कार से सफर किया, लेकिन दूसरे कार्यकाल में ये सारे भ्रम टूट गए। सरकार की सालगिरह पर केजरीवाल ने अपने बंगले के लॉन में एक शानदार पार्टी दी। इस पार्टी का मेन्यू ऐसा था कि टाटा, बिरला और अंबानी भी शरमा जाएं। 11 और 12 फरवरी को हुई इस पार्टी में केटरिंग का अरेंजमेंट सरकारी कंपनी दिल्ली टूरिज्म एंड ट्रांसपोर्टेशन डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (DTTDC) को सौंपा गया था। DTTDC ने इस पार्टी के लिए दिल्ली के सबसे महंगे ताज पैलेस होटल को ठेका दिया। इस पार्टी में जो खाना परोसा गया वो करीब 12 हजार रुपये प्रति प्लेट पड़ता है। जबकि नियमों के मुताबिक ऐसी पार्टियों में प्रति प्लेट खर्च 2500 रुपये ही हो सकता है। साथ ही पार्टी पर कुल खर्च 4.5 लाख रुपये से ज्यादा नहीं होना चाहिए। DTTDC ने इस पार्टी के लिए दोगुने से भी ज्यादा 11.04 लाख का बिल दिया तो सरकार ने यह कहना शुरू कर दिया कि हमें डिस्काउंट दो। जिसके बाद पहले से ही बदहाल इस सरकारी कंपनी ने डिस्काउंट देते हुए बिल 9.9 लाख कर दिया।
6. केजरीवाल का भी एक ‘रॉबर्ट वाड्रा’ है!
6 अगस्त 2015 को निकुंज अग्रवाल नाम के एक डॉक्टर ने दिल्ली सरकार के चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय में नौकरी के लिए आवेदन जमा किया। इस एप्लिकेशन में ग्रामर की ढेर सारी गलतियां थीं। इसके बावजूद डॉक्टर साहब को 4 दिन के अंदर अप्वाइंटमेंट लेटर मिल गया। वो भी तब जब अस्पताल में डॉक्टरों की कोई वैकेंसी नहीं थी। इसके एक महीने से भी कम समय में 4 सितंबर 2015 को निकुंज अग्रवाल को स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन का ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी (ओएसडी) बना दिया गया। अगर आप सोच रहे हैं कि डॉक्टर निकुंज अग्रवाल में ऐसी क्या खूबी थी कि कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारी होने के बावजूद उन्हें इस अहम पद के लिए चुना गया, तो इसका जवाब यह है कि वो केजरीवाल की साली की बेटी के पति (रिश्ते में दामाद) हैं। डॉक्टर अग्रवाल पर मेहरबानी यहीं खत्म नहीं हुई। उनको अब तक चार बार एक्सटेंशन मिल चुका है। कॉन्ट्रैक्ट इंप्लाई होने के बावजूद इस सरकारी दामाद को आईआईएम अहमदाबाद में मैनेजमेंट डेवलपमेंट प्रोग्राम के लिए भेजा गया। इस कोर्स की फीस 1.15 लाख रुपये है। आम तौर पर इसके लिए सीनियर अधिकारियों को ही भेजा जाता है। नियमों के मुताबिक निकुंज अग्रवाल को इस ट्रेनिंग के लिए भेजा ही नहीं जा सकता। डॉक्टर साहब ने इसी दौरान जनता के पैसे पर चीन की सैर भी की।
7. सिक्योरिटी गार्ड्स की भर्ती में बड़ा गबन!
दिल्ली सरकार ने सरकारी अस्पतालों में तैनाती के लिए मोटी सैलरी पर सिक्योरिटी गार्डों की भी भर्ती की। तर्क दिया गया कि डॉक्टरों पर हमले बढ़ रहे हैं। लेकिन इसके लिए टेंडर की प्रक्रिया पूरी नहीं की गई। चूंकि इस पूरी प्रक्रिया को बेहद गुपचुप तरीके से किया गया तो इससे यह शक मजबूत होता है कि भर्ती में ज्यादातर आप कार्यकर्ताओं को ही एडजस्ट किया गया होगा। जिन तीन सिक्योरिटी एजेंसियों को इसके ठेके मिले वो थीं- नाइटवॉच, इनोविज़न और SIS इंडिया। ये तीनों वही कंपनी हैं जिन्हें ये सर्वे करने की भी जिम्मेदारी दी गई कि दिल्ली के अस्पतालों में कितने सिक्योरिटी स्टाफ रखने की जरूरत है। यह सीधे-सीधे कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट का मामला है। गार्ड्स की सैलरी सिक्योरिटी एजेंसीज़ ने अपनी मर्जी से तय कर ली। इसमें 8.3 फीसदी बोनस और 4.8 फीसदी ग्रैच्युटी भी रखी। जबकि इस तरह के बेनेफिट्स कम से कम 6 महीने का प्रोबेशन बीतने के बाद ही मिलता है।
8. अपने प्रचार पर पानी की तरह बहाए पैसे
इस साल जुलाई में शुरू हुए ‘टाक टु एके’ प्रोग्राम के लिए देशभर में जोरदार ऑनलाइन प्रचार किया गया। इसमें भी बड़े पैमाने पर धांधली हुई। इसी का नतीजा रहा कि इस अभियान के लिए जिस परफेक्ट रिलेशंस नाम की कंपनी को ठेका दिया गया था उसका पेमेंट रुका हुआ है और नई पीआर एजेंसी की तलाश की जा रही है। दिखाया गया था कि जनता के सवाल लाइव लिए जा रहे हैं लेकिन सच्चाई यह थी कि प्रोग्राम पहले से फिक्स था। दिल्ली के जरूरतमंदों के बजाय पंजाब और गोवा के सवाल लिए गए। ये सवाल भी दिल्ली में बैठे आम आदमी पार्टी के ही वॉलेंटियर पूछ रहे थे। इस बारे में भी न्यूज़लूज़ ने उसी दिन खुलासा किया था।
पढ़ें रिपोर्ट: टॉक टु एके फिक्स था, देखिए वीडियो
9. बड़े मंत्रियों को विदेश घूमने का चस्का
डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया और स्वास्थ्यमंत्री सत्येंद्र जैन विदेशों में सैर-सपाटे के मामले में सबसे आगे हैं। दस्तावेजों के मुताबिक सिसोदिया पिछले साल 4 लोगों के साथ ब्राजील की यात्रा पर गए थे। कहा गया कि वहां पर 11 से 16 अगस्त तक एक सेमिनार में वो हिस्सा लेंगे। इस सेमिनार में सिसोदिया ने क्या किया यह तो किसी को नहीं पता, लेकिन उन्होंने अपनी यात्रा के रूट में अर्जेंटीना भी जुड़वा लिया। वहां पर वो इग्वाजू फॉल की सैर पर गए। लेकिन यात्रा के लिए तय नियम-कायदे पूरे नहीं किए गए। सिसोदिया के इस शौक का नतीजा यह हुआ कि सरकारी खजाने को 29 लाख रुपये से ज्यादा का अतिरिक्त बोझ पड़ा। ओपन मैगजीन की रिपोर्ट के मुताबिक सिसोदिया के साथ जो चार लोग गए थे उनमें से सिर्फ एक उस विषय के एक्सपर्ट थे। पहली ही नजर में समझ में आ जाता है कि बाकी सभी सिर्फ विदेश घूमने की नीयत से गए थे। आम तौर पर ऐसी सरकारी यात्राएं एयर इंडिया से होती हैं, लेकिन सिसोदिया ने विदेशी एयरलाइन केएलएम के बिजनेस क्लास को चुना, ताकि वो ज्यादा ऐशो-आराम के साथ सफर कर सकें।
अगले ही महीने सितंबर में सिसोदिया ने ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की यात्रा की। इस बार भी उन्होंने एयर इंडिया के बजाय सिंगापुर एयरलाइंस में बिजनेस क्लास की टिकट बुक कराई। इस साल मार्च में उन्होंने लंदन का टूर किया। बताया गया कि वहां पर वो लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में 1 दिन के सेमिनार में हिस्सा लेंगे, लेकिन उनकी यात्रा 4 दिन की रखी गई। 17 मार्च से 20 मार्च तक सिसोदिया ने अपने सेक्रेटरी के साथ लंदन में जमकर सैर-सपाटा किया। बाद में पता चला कि यह सेमिनार भी लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स का न होकर वहां पढ़ने वाले कुछ भारतीय छात्रों का कार्यक्रम था। जिसके लिए सरकारी खर्चे पर यात्रा नहीं की जा सकती। (हमारे सूत्रों के मुताबिक इस यात्रा में सिसोदिया ने खालिस्तानी अलगाववादी गुटों से पंजाब चुनाव में मदद के सिलसिले में मुलाकात भी की थी।)
अब तक मनीष सिसोदिया को विदेश घूमने का मानो चस्का लग चुका था। मई में फिर से उन्होंने अगली यूरोप यात्रा का बहाना ढूंढ लिया। इस बार 30 मई से 3 जून तक जर्मनी घूमने का प्रोग्राम रखा गया। कहा गया कि जर्मनी हैबिटेट फोरम में उनको हिस्सा लेना है। जबकि इसका विषय ऐसा कुछ नहीं था जिसका दिल्ली के लोगों से कुछ भी लेना-देना हो। सिसोदिया के साथ जो दो लोग ले जाए गए उनके लिए भी कोई मंजूरी वगैरह नहीं ली गई। बाकी यात्राओं की तरह इसके लिए भी एलजी से जरूरी मंजूरी नहीं थी।
मनीष सिसोदिया की तरह सत्येंद्र जैन को भी जनता के पैसे विदेशों में उड़ाने का चस्का लगा हुआ है। सत्येंद्र जैन ने इस साल 12 से 15 मार्च तक मलेशिया की सैर की। बताया कि वो वहां पर रैपिड ट्रांसपोर्ट कॉरीडोर (दिल्ली में इसे पहले से ही बीआरटी के नाम से जाना जाता है।) के स्टडी टूर पर जा रहे हैं। सत्येंद्र जैन ने 5 लोगों के साथ बिजनेस क्लास की टिकट बुक कराई। जब उनसे अपनी टीम का साइज कुछ कम करने को कहा गया तो उन्होंने अपने बीच में से इकलौते एक्सपर्ट का नाम कटवा दिया।
सत्येंद्र जैन पिछले साल 25 से 29 जून तक स्वीडेन की राजधानी
स्टॉकहोम में ‘स्टडी’ टूर पर रहे थे। वहां पर वो दिल्ली में भारतीय राजदूत के एक मौखिक बुलावे पर पहुंच गए थे। इस यात्रा में उनके साथ ट्रांसपोर्ट मंत्री गोपाल राय समेत कुल 11 लोग थे। इस दौरान ये लोग
यूके भी गए और इस सबके लिए कोई मंजूरी लेने की जरूरत नहीं समझी। एक और गौर करने वाली बात है कि केजरीवाल एंड कंपनी की विदेश यात्राओं में मेजबानी ज्यादातर सिख संगठनों ने की। ऐसे सिख संगठन, जिनका झुकाव खालिस्तान की तरफ माना जाता है।
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ओपन मैगजीन ने जो बातें छापी हैं उनमें से कई पहले से लोगों की जानकारी में आ चुकी हैं। नई बात यह है कि मैगजीन की रिपोर्ट में इन सारे आरोपों के पक्ष में दस्तावेज पेश किए गए हैं। हालांकि हम इनकी स्वतंत्र तौर पर पुष्टि नहीं कर रहे हैं। फिलहाल केजरीवाल सरकार ने भी अब तक इन आरोपों पर कोई सफाई नहीं दी है। वैसे एक पहलू यह भी है कि केजरीवाल सरकार की करतूतों की लिस्ट इससे भी कहीं अधिक लंबी है। मिसाल के तौर पर अभी हाल ही में फिनलैंड दौरे पर गए मनीष सिसोदिया की यात्रा के बारे में हमें कुछ एक्सक्लूसिव जानकारियां हाथ लगी हैं। इस बारे में भी हम न्यूज़लूज़ पर बहुत जल्द एक रिपोर्ट पब्लिश करने वाले हैं।

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